एक अद्भुत सत्संग अनुभव: धार्मिकता और सेवा की महत्वपूर्ण कथा 


आज हमने बड़े सत्संग घर में नामदान की कार्यवाही देखी। सत्संग घर अंदर से “T” के आकार में है। नामदान के सारे अभिलाषी जो कि कुल चार सौ साठ जोड़े थे, बीच के मुख्य भाग में बैठे थे। महाराज जी स्टेज के सामने कुर्सी पर बैठे थे और अभिलाषी जोड़े उनके आगे से लाईन लगाकर गुज़र रहे थे। नामदान के लिए स्वीकृत जोड़े हॉल की दाय तरफ़ वाले हिस्से में और अस्वीकृत जोड़े, जो कि इस बार केवल पाँच प्रतिशत थे, बायीं तरफ़ से हॉल से बाहर जा रहे थे। हुजूर नामदान के अभिलाषियों पर दृष्टि डालते और उनसे संक्षेप में प्रश्न पूछते थे। प्रत्येक स्वीकृत हुए व्यक्ति को एक कार्ड दिया जाता था। फिर स्वीकृत जोड़े दो भागों में बाँटे गये। भाइयों को एक तरफ़ और बीबियों को दूसरी तरफ़ बिठा दिया गया। महाराज जी कुछ समय के लिए हॉल से बाहर चले गये। सारे चुने हुए अभिलाषियों को स्टेज के पास इकट्ठे कर लिया गया और सारे दरवाज़े बन्द कर दिये गये। गैलरियों की अच्छी तरह से छानबीन की गयी, ताकि नामदान के समय केवल सत्संगी ही उपस्थित हों। हुज़ूर अन्दर वापस आ गये। उन्होंने अपनी शान्त, गम्भीर और दया भरी आवाज़ में नामदान के अभिलाषियों को शिक्षा दी। विदेश में महाराज जी के प्रतिनिधियों के द्वारा नामदान के समय पढ़कर सुनाई जानेवाली शिक्षा महाराज जी के द्वारा दी गयी शिक्षा से मिलती है। जब महाराज जी कोई बात समझाते हैं, तो उनके हाथों के कोमल इशारों से बहुत सुन्दर प्रभाव पड़ता है। उनके हाव-भाव से पूर्ण प्रेम, निर्मलता और सुन्दरता प्रकट होती है।

नाम का पूरा भेद देने के बाद महाराज जी ने पांच नाम का सुमिरन पाँच-छः बार दोहराया। दीक्षित भाइयों और बीबियों ने भी पाँच नामों को याद करने के लिए हुजूर के पीछे-पीछे दोहराया। महाराज जी फिर कुछ देर के लिए बाहर चले गये। इस ड्यूटी पर लगे सेवादारों ने नामदान लेने वालों को लगभग पन्द्रह मिनट तक पाँच नाम का सुमिरन याद करवाया। महाराज जी फिर वापस आ गये और आपने शब्द-धुन का भेद दिया। सुमिरन और भजन के लिए अपनाये जानेवाले आसन के बारे में समझाया। हम सभी ने भी भजन के आसन में हुजूर की पावन उपस्थिति में लगभग 20 मिनट तक अभ्यास किया दीक्षित व्यक्तियों से पूछा गया कि उन्होंने क्या सुना। महाराज जी ने अपने अन्तिम प्रवचनों में सभी को आशीर्वाद दिया। शाम को नामदान की एक और बैठक हुई जिस कारण आज अन्य कोई कार्यवाही न हो सकी। इसके बाद हुजूर मिट्टी की सेवा के लिए दरिया की तरफ़ चले गये जहाँ बड़ी सड़क की ओर से दरिया तक एक ढलानदार सड़क बन रही थी। दरिया तक जानेवाली यह सड़क, उन सेवादारों के लिए सुविधाजनक होगी जो ईंधन और दाह-संस्कार के लिए सरकण्डा काटने के लिए जाते हैं।

महाराज जी के सत्संग में नामदान का अनुभव: अध्यात्मिकता के प्रेरक पल

आज फिर सत्संग नहीं हुआ, केवल विदेशियों को कुछ मिनटों के लिए दर्शन हुए। मिट्टी की सेवा के दौरान कल वाली सड़क पर और मिट्टी डाली गयी।

डेरा निवासियों के लिए एक या दो कमरों के मकानों वाली एक आबादी बनायी जा रही है। इन मकानों के मालिकों को यह सहमति के लिए कहा गया है कि जब वे लम्बे समय के लिए अनुपस्थित हों तो उस समय उनके घरों में दूसरों को ठहराया जा सके।

हुजूर के छोटे भाई, कैप्टन पुरुषोत्तम सिंह (शोती) आज शाम के समय मिस्टर और मिसेज़ शिडलो और रौन को कार में, नज़दीक के गाँव बाबा बकाला में घुमाने के लिए ले गये।

1 जनवरी, 1962

आज सुबह बहुत सुन्दर सत्संग हुआ जिसमें महाराज जगत सिंह जी की विधवा भी शामिल थीं। वे अब काफ़ी वृद्ध और कमज़ोर हो गयी हैं। सभी उनका बहुत सम्मान करते हैं।

आज सत्संग के दौरान महाराज जी ने समझाया कि इस जन्म में हम पूर्व जन्मों में किये हुए पुण्यों और पापों का फल भोग रहे हैं। पूर्व जन्मों में किये गये पुण्यों के कारण हमें धन-दौलत, मान-बड़ाई, खूबसूरती और नेक स्वभाव मिल जाता है। अगर हमारे बहुत श्रेष्ठ कर्म हों, तो हम स्वर्गों और बैकुण्ठों में पहुँच जाते हैं। जब पुण्यों का फल समाप्त हो जाता है, तो हमें फिर मृत्युलोक में जन्म लेना पड़ता है। हो सकता है कि हम बहुत लम्बे समय तक मानसिक मण्डल के उच्चतम स्थान, त्रिकुटी का आनन्द ले सकें। इन खण्डों का अस्थायी आनन्द हमें भ्रम में फँसाकर मोहित किये रखता है। जिन अच्छे कर्मों के कारण हमें यह फल मिला है, उनका फल समाप्त हो जाने पर या तो हमारे अन्दर उनके प्रति परिवर्तन आ जाता है और हम उनकी मिठास से ऊब जाते हैं; या फिर वे हमसे छीन लिए जाते हैं जिससे हमारा मन निराशा और कड़वाहट से भर जाता है। समय गुज़रने पर उनकी याद धुंधली हो जाती है या मृत्यु के कारण वह मिट जाती है।

हुजूर ने फ़रमाया कि हम किये हुए कर्मों के कारण या तो सी-क्लास के क़ैदियों की तरह क़ैद काट रहे होते हैं या ए-क्लास के क़ैदी होते हैं जिनको अच्छे आचरण के कारण कुछ समय के लिए दुःखों से छुटकारा मिला होता है; पर हर अवस्था में हम कैदी ही होते है।

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