“सत्संगी संवाद: नामदान की बख्शिश और सत्संग के प्रश्न”
आज़ सत्संग घर में बीबियों को नामदान की बख्शिश हुई। अभिलाषियों में से निन्यानवे प्रतिशत को चुन लिया गया। जब नयी सत्संगी बीवियों को सेवादार पाँच नाम याद करवा रहे थे, तो महाराज जी ने हमें अपने साथ बाहर बरामदे में धूप में आने के लिए कहा। इस समय हम केवल छः ही उपस्थित थे। हम कुछ देर तक हजूर के सामने दरी पर बैठे रहे। जब कि वे टेक लगाकर आराम कर रहे थे। महाराज जी थके हुए लग रहे थे। हम सोचते थे कि उनको अकेले आराम करना चाहिए, पर हम यह सलाह देने में संकोच कर रहे थे। हमारे सिर के ऊपर एक गुम्बद था जिस पर शहद की मक्खियों ने अपने छत्ते बनाये हुए थे और वे हमारे एर्द-गिर्द मँडरा रही थीं। हुजूर ने फ़रमाया कि अगर इनको उड़ाने की ‘ कोशिश न करें तो ये हमें कुछ नहीं कहतीं, पर हममें से कुछ अभी भी परेशान थे। इसलिए हुजूर ने सलाह दी कि हम दूसरी दरी पर बैठ जायें। इससे एक तरह से हुजूर को वह आरामदायक एकान्त भी मिल गया, जो हम सोचते थे कि उनको मिलना चाहिए।
बाद में मारग्रेट और मैं, डेरे से कुछ दूरी पर ब्यास नदी की तरफ़ एक सुनसान जगह पर गये, जहाँ डॉ. जॉनसन एक वृक्ष के नीचे घण्टों बैठकर अभ्यास किया करते थे। हम दरिया के साथ-साथ रेत पर चलते हुए एक खाई में से गुज़रकर उस वृक्ष के नीचे पहुँचे। इर्द-गिर्द के ऊँचे ग्रामीण इलाक़े का बरसाती पानी चिकनी मिट्टी को बहा कर दरिया की तरफ़ ले जाता है, जिस कारण गहरी खाइयाँ बनी हुई हैं। वापस आते समय ख़ूब कसरत हुई, यह एक तरह से पर्वतारोहण की तरह का एक छोटा-सा अभियान था क्योंकि दरिया के पानी से बचने के लिए वे खाइयाँ पार करनी पड़ीं जो कि कुछ स्थानों पर तीस-चालीस फुट तक गहरी थीं।
हम (विदेशियों) में से कुछ, बिना सोचे समझे एक भारतीय सत्संगी की कार में बैठकर अमृतसर चले गये। यह शहर डेरे से लगभग तीस मील की दूरी पर है। उनकी डेरे से अनुपस्थिति के कारण डेरे वालों को काफ़ी परेशानी हुई। इससे हमें इस बात का अहसास हुआ कि महाराज जी को बताये बिना हमें डेरे से बाहर नहीं जाना चाहिए। बाद में | अमृतसर जानेवालों के बिना बताये ही अनुपस्थित होने के कारण हुजूर ने हमें हिदायत दी कि हमें जब भी कहीं जाना हो, बता कर जायें, क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप में भारत सरकार के समक्ष हमारी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं।
3 जनवरी
आज हमने महाराज जी की हुजूरी में एक सत्संग सुना जिसमें हुजूर चुपचाप बैठे रहे। एक पाठी ने शब्द पढ़ा और सत्संग भी हुआ। दया मेहर के पुंज, हुजूर शान्ति भरे जलाल में बैठे हमारी और प्यार से देखते रहे। बाद में हमेशा की तरह हुजूर के बाग़ में विदेशियों के लिए सत्संग हुआ जिसमें खन्ना साहिब ने भण्डारे वाले सत्संग का अंग्रेज़ी में बहुत बढ़िया अनुवाद पढ़कर सुनाया। मैंने अर्ज़ की कि इस सत्संग की टेप विदेशी सत्संगियों को दी जाये। हुजूर ने फ़रमाया कि सत्संग की संक्षिप्त टेप देने की कोशिश की जायेगी, क्योंकि पूरे सत्संग की टेप बहुत लम्बी हो जायेगी। अब तक मैंने जितने भी सत्संग सुने हैं, यह उनमें से सबसे बढ़िया था, किसी-किसी जगह यह बहुत ज़ोरदार, प्रभावशाली और काव्य-रस से भरपूर था।
“सत्संग और धार्मिक अनुभवों का वर्णन”।
सत्संग के बाद बहुत अच्छे प्रश्न पूछे गये। मिसेज़ जैप ने, जिनको प्यार से जैपी कहकर पुकारा जाता है, पूछा कि इनसानी जामे के बाद, अगर किसी कारण आत्मा को नीचे की योनियों में जन्म लेना पड़ जाये, तो क्या उसे सबसे नीचे की योनि में जाना पड़ेगा और फिर सारा चक्कर लगाना पड़ेगा ? महाराज जी ने फ़रमाया कि यह जरूरी नहीं। आत्मा को जन्म उसके पूर्व किये गये कर्मों और उन जन्मों में पैदा हुई तृष्णाओं के अनुसार मिलता है। जैपी ने फिर पूछा कि अगर कोई सत्संगी नामदान के बाद अपने कर्मों का भुगतान इस जन्म में पूरा न कर सके, पर उसकी इस संसार में वापस आने की इच्छा न हो तो क्या उसको किसी ऊपर के मण्डल में यह भुगतान करने की आज्ञा मिल जाती है या उस जीव पर उन मण्डलों में किये गये नये कर्मों का बोझ भी चढ़ेगा ? हुज़ूर फ़रमाया कि नहीं, जीव वहाँ केवल भजन द्वारा ही अपने कर्मों का हिसाब ने देगा। चाहे इन ऊपरी मण्डलों में किसी प्रकार की क्रिया नहीं होती, पर फिर भी इस मृत्युलोक की तुलना में उच्च रूहानी मण्डलों में कर्मों के भुगतान में ज्यादा समय लगता है।