“सत्संग और एक अनोखी नए साल की पार्टी का अनुभव”। राधा स्वामी सत्संग
एक बार एक जिज्ञासु ने पूछा, “हम ग़रीबों की हालत सुधारने के लिए नेक कार्य क्यों न करें, दूसरों का दुःख दूर करने को अपने जीवन का लक्ष्य क्यों न बनायें? निश्चय ही इस तरह का विचार रखना अच्छी बात है।”
हुजूर ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया- हम इस संसार की हालत सुधारने की जितनी चाहे कोशिश कर लें, हम केवल सी-क्लास के क़ैदियों को ए-क्लास में ही परिवर्तित कर सकते हैं। हम इस बात पर गर्व महसूस कर सकते हैं, पर क्या हमने कभी यह सोचने की कोशिश की है कि इस ‘गर्व’ का अचेत रूप में हमारे मन की हाँ मैं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
महाराज जी ने समझाया संसार की सहायता हम तभी कर सकते हैं अगर हम पहले अपने मन को नियन्त्रित कर लें और यह काम हठ-कम द्वारा नहीं हो सकता। अगर कोई साँप को पिटारी में बन्द कर दे तो वह साँप के डंक से केवल उतनी देर तक ही बच सकता है, जब तक साँप पिटारी में बन्द है। पिटारी में बन्द होने से साँप फ़ाख़ता नहीं बन जाता। जैसे कँटीली झाड़ी अँगूरों में उगकर अँगूर नहीं देती। हठ कर्मों से मन थोड़ी देर के लिए दब जाता है, पर इन्द्रियों के भोगों की सुगन्धि मिलते ही मन फिर नियन्त्रण से बाहर होकर हमें अँगुलियों पर नचाना शुरू कर देता है और मन को नियन्त्रित करने के लिए प्रयोग किये गये हठ-कर्म व्यर्थ सिद्ध होते हैं।
सत्संग में महाराज जी ने फ़रमाया कि मन या होमैं को वश में करने का एकमात्र साधन शब्द या नाम है। केवल शब्द या नाम के द्वारा ही हम अपनी पहचान करके परमात्मा की पहचान कर सकते हैं। शब्द ही एकमात्र अमर- अविनाशी और सार तत्त्व है। शब्द के बिना बाक़ी सब साधन हमें माया के भ्रम जाल में फँसाकर रखते हैं। माया के अन्धेरे का नाश करके सच्चे और स्थायी प्रकाश में ले जानेवाली एकमात्र शक्ति शब्द है। सच्चे और पूर्ण आनन्द में ले जानेवाला परम तत्त्व केवल शब्द है।
शब्द: सत्संग में महाराज जी के साथ एक अनुभव’
सत्संग के बाद सभी को प्रसाद बाँटा गया। पश्चिम वालों को पत्तों के बने दोनों (डूनों) में प्रसाद दिया गया। इसके बाद हमें दर्शन प्राप्त हुए। एक बीमार से हुजूर ने उसकी सेहत के बारे में पूछा। उस दिन की खूबसूरती और हल्की गर्माहट की तरफ़ इशारा करते हुए हुजूर ने हमें पूछा कि क्या दूसरे देशों में जैसे दक्षिणी अफ्रीका, कैनेडा, अमेरिका, जर्मनी और इंग्लैण्ड में इस तरह का दिन दिखाई देता है? शाम को साढ़े चार बजे, उन्होंने हमें नये साल की पार्टी पर अपनी कोठी में बुलाया और नये साल के कार्ड और उपहार के रूप में अपने हस्ताक्षरों वाली एक-एक फ़ोटो भी दी।
कल हिमालय पर्वत बादलों से ढका रहा पर आज वह ऐसे लग रहा जैसे सपने में बर्फ से ढकी उसकी चोटियाँ मैदान के ऊपर तैर रही हों। हवा इतनी स्वच्छ है कि विश्वास नहीं होता, जैसे आसमान धो दिया या हो। यहाँ दोपहर में काफ़ी गर्मी हो जाती है पर जैसे ही सूर्य अस्त होता है सर्दी हो जाती है और तब तक सर्दी ही रहती है जब तक धूप नहीं निकलती। कल बादलों के कारण सर्दी थी।
हम महाराज जी की तरफ़ से दी गयी नये साल की पार्टी में शामिल ए। यह उनकी नयी कोठी और डॉ. जॉनसन की कोठी के बीच बाग़ एक शामियाने के नीचे हुई। हुज़ूर और उनकी धर्मपत्नी हरजीत कौर, मारे स्वागत के लिए दरवाज़े पर खड़े थे। मेज़ों पर प्लेटें रखी हुई थीं और खाना परोसा हुआ था। हमने पहले खाना खाया। खाने का प्रबन्ध हुत बढ़िया था। भोजन में देसी मिठाइयों और अन्य कई स्वादिष्ट ज़ों का प्रबन्ध था। इसके बाद हरजीत कौर जी ने बीबी रली के साथ लकर हारमोनियम के साथ शब्द गाकर मनोरंजन का प्रोग्राम शुरू कया। बीबी रली हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी के समय से उनके घर रह रही हैं। कई भारतीय सत्संगियों ने शब्द गाए और कविताएँ सुनायीं । अमेरिकन सत्संगी उस समय उपस्थित थे, उन्होंने वह शब्द सुनाया वे अमेरिका में सत्संग से पहले गाया करते थे। डॉ. स्टोन ने सारे ऐचम-वासियों की भावनाओं को प्रकट करते हुए कहा कि भारत देश के लोग कितने भाग्यशाली हैं कि इनको महाराज जी की निकटता प्राप्त है, जब कि हमें हुजूर को मिलने के लिए हज़ारों मील सफ़र करना पड़ता है, जिस कारण सभी पश्चिम-वासियों को हुजूर के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। अभी पार्टी चल रही थी कि एक छोटा-सा उल्लू उड़कर अन्दर आ गया और शामियाने के अन्दर चक्कर लगाता हुआ महाराज जी के सिर के पास आ गया। हुजूर ने उस पर एक दृष्टि डाली और जैसे कि उस उल्लू का कार्य सम्पूर्ण हो गया हो, वह उड़ कर रात के अन्धेरे में अलोप हो गया।
हरजीत कौर जी के पिता, राव साहिब शिव ध्यान सिंह जी ने और डेरे की ज़मीनों और कृषि के इन्चार्ज सरदार बलवन्त सिंह जी ने मिलकर एक नाटक (skit) पेश किया, जिसमें उन्होंने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में एक कविता भी सुनायी, जिससे सभी हँस-हँस कर लोट-पोट हो गये। बाद में राव साहिब जो कि बहुत ही हँसमुख बुजुर्ग हैं, ने रौन (Ron) को कहा, “बूढ़े आदमी की मूर्खता को माफ़ कर देना।” एक जर्मन सत्संगी औटो और महाराज जी के सम्बन्धी चाचा जी के बीच खाने का मुक़ाबला हुआ। हुज़ूर महाराज जी हमेशा की तरह बहुत सुन्दर और मनोरम लग रहे थे और उन्होंने हम सबके साथ पार्टी का आनन्द लिया। मेरे पति ने हुजूर को ‘अन्तर की आवाज़’ (The Inner Voice) की जर्मन भाषा में अनुवाद की दो कापियाँ भेंट की जो कि यूरोप में तैयार की गयी थीं। साथ ही उन्होंने हुजूर को, इंग्लैण्ड में होनेवाले अगले सत्संग में आने के लिए विनती की जिससे हमें बहुत खुशी हुई। हम, ‘मिस्टिसिज्म: द स्प्रिचुअल पाथ’ के लेखक के भाई साहिब प्रो. जनकराज पुरी को भी मिले। इससे पहले हम ‘मिट्टी की सेवा’ भी देखने गये।